Thursday, October 20, 2016

"कन्यादान"

कन्यादान हुआ जब पूरा 
आया समय विदाई का
हँसी-ख़ुशी सब काम हुआ था
सारी रस्म अदायी का,

बेटी के उस कातर स्वर ने
बाबुल को झकझोर दिया
पूछ रही थी पापा तुमने
क्या सच में मुझको छोड़ दिया,

अपने आँगन की फुलवारी
मुझे सदा कहा करते थे तुम,
मेरे रोने को पल भर भी
बिलकुल सहा नहीं करते थे तुम 

क्या इस आँगन के कोने में
मेरा कुछ भी अब स्थान नहीं
क्या मेरे रोने को पापा
क्या तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं

देखो अन्तिम बार देहरी
लोग मुझसे पुजवाते हैं
आकर के पापा क्यों इनको
आप नहीं धमकाते हैं,

नहीं रोकती माँ और दीदी
भैया से भी आस नहीं
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है
कोई आता मेरे पास नहीं,

बेटी की बातों को सुनकर
पिता नहीं रह सका खड़ा
उमड़ पड़े आँखों में आंसू
बदहवास-सा दौड़ पड़ा,

कातर बछिया- सी वह बेटी
लिपट पिता से रोती थी,
जैसे यादों के अक्षर वह
अश्रु-बिंदु से धोती थी,

मान को लगा गोद से कोई
मानो सब-कुछ छीन चला
फूल सभी घर की फुलवारी से
कोई सारे बीन चला,

छोटा भाई भी कोने में बैठा
सुबह से ही सुबक रहा,
उसको कौन करेगा चुप
अब वह कोने में दुबक रहा,

बेटी के जाने पर घर ने
जाने क्या-क्या खोया है,
कभी न रोने वाला पिता भी
आज फूट-फूट कर रोया है।

ऋचा श्रीवास्तव।
20-10-2016, पटना। 

Tuesday, August 9, 2016

"मैं क्या बनूँगा माँ"


बड़ी उमंग से, बड़े जोश से 
बेटा मेरा बोला, कल क्या 
मैं बनूँगा माँ ? पढ़ाई में  
नहीं लगता है मन थोड़ा। 

सब कहते हैं, पढ़ो-पढ़ो 
तुम सदा अव्वल रहो 
पर कैसे बताऊँ सबको 
खेल में ध्यान रहता मुझको। 

पढ़ते-पढ़ते मैं थक जाता हूँ 
"होमवर्क" नहीं कर पाता हूँ 
टीचर करती नाक में दम 
पढ़ना पड़ता मुझको हरदम। 

जिस दिन मैं नहीं पढता हूँ 
घर में अलग. "ताने" सुनता हूँ 
दादी कहती बिगड़ गया 
दादा कहते "हाथ से गया"। 

पाप की तो बात छोड़ो, कहते 
हरदम मैं हूँ ज़ीरो 
अक्षर लगते हैं, मुझे अब गोल 
पढ़ाई से अब मैं, हो गया हूँ बोर। 

सुन ये सब माँ बोली 
बेटा अब तू बस कर 
तू मेरे जिग़र का टुकड़ा 
न कर तू ज़्यादा बड़-बड़। 

मेरी आँखों के तारे सुन 
तेरे भीतर हैं बड़े गुण 
लाकर उनको सामने तू 
खुद नाम कर दे रोशन तू 

पढ़ाई में क्या रखा है  
मुझे तो बस इतना पता है 
जिसने की है, माँ की भक्ति 
पलटी है क़िस्मत उसकी 
चमका है उसका सितारा 
उठा पेन, अब लिख दे पहाड़ा। 

ऋचा श्रीवास्तव 
10-08-2016
पटना, बिहार। 

Friday, August 5, 2016

"राखी पर हर बहन की तरफ़ से भाईयों को सन्देश"


एक भाई ने किया बहन से सवाल 
बोल इस राखी पर तुझे क्या चाहिए उपहार, 
सोना दूँ, चाँदी दूँ या दूँ ख़रीद कर मोटरकार। 
बहन ने कहा, प्यार का कोई सौदा नहीं होता 
कोई भी तोहफ़ा रिश्तों से बढ़ कर नहीं होता। 

फ़िर भी देना चाहते हो कोई उपहार 
तो करो वादा इस साल,
रखोगे माँ-बाप का हमेशा तुम ख़्याल। 
ये वो अनमोल तोहफ़ा है जिसे देखने को 
हम बहनों की आँखें तरस जाती हैं। 

दिल ख़ैरियत जानने को मचल जाता है 
पूरा वक़्त हमारा फ़ोन पर ही गुज़र जाता है 
इसलिए इस राखी पर बस इतना करना वायदा 
रखोगे ख़्याल तुम उनका ख़ुद से भी ज़्यादा। 

बहन तो वो पराई फ़सल है जिसे उखाड़ कर 
कहीं भी फेंक दो, वह जड़ पकड़ लेती है 
लेकिन माँ-बाप की जड़ें तो सीधा ईश्वर के दिल से जुड़ी होती हैं। 
जिसने भी इन्हें सींचा उसने स्वर्ग का सुख पाया है 
धन्य है तुम्हारी क़िस्मत जिसने ये अनमोल रतन पाया है। 

ऋचा श्रीवास्तव 
05-08-2016
पटना। 

Friday, July 8, 2016

"कभी-कभी ख़ुद से"

कभी-कभी ख़ुद से बातें करो 
कभी-कभी खुद से बोलो 
अपनी नज़र में तुम क्या हो 
ये मन की तराज़ू में तौलो। 

हरदम बैठे न रहो 
शोहरत की इमारत में 
कभी-कभी खुद को पेश करो 
आत्मा की अदालत में।  

ईश्वर कहता कृति कमाकर 
तुम तो थे बहुत सुखी 
मगर तुम्हारे आडम्बर से 
हम हैं बड़े दुःखी 

कभी तो अपने भव्य महल की 
खिड़कियाँ खोलो 
अपनी नज़र में तुम क्या हो 
ये मन की तराज़ू में तौलो। 

ऋचा श्रीवास्तव। 
09-07-2016 
पटना 

Saturday, June 4, 2016

"बोझ"


एक बच्चे को मैंने देखा 
बोरी लादे पीठ पर 
उसके पास चले गए 
हम कुछ सोच कर 


क्यों लादे फिर रहे हो 
पीठ पर यह बोझा 
मजदूरी क्यों कर रहे हो 
हमने उससे पूछा 


प्रश्न के उत्तर में वह 
ले गया हमें अपने संग 
वह एक स्कूल था जहाँ 
पहुँच हम रह गए दंग 


सभी बस्तों से 
किताबें ही किताबें निकल रही थीं 
कुछ की घर पर ही रह गयी थी 
उन्हें सज़ा मिल रही थी 


आज के ज़माने के ये बोरी बस्ते
मजदूरी में बदल गए हैं 
कल डॉक्टर इंजीनियर बनने वाले 
आज मजदूर  बन गए हैं। 

ऋचा श्रीवास्तव। 
पटना ०४-०६-२०१६  

Thursday, April 7, 2016

"प्रार्थना के पूर्व"


ईश्वर सबसे बुद्धिमान और सबसे होशियार है। 
उसको सबकी ख़बर है, उसकी सब पर नज़र है। 

जो हम बोल रहे हैं, वो उससे ज़्यादा सुन पा रहा है 
जो हम देख रहे हैं, वो उससे ज़्यादा देख पा रहा है। 
हम जिस लायक हैं, उसने उतना दे रख है। 

ईश्वरीय कृपा पर विश्वास हो जाने पर 
प्रलोभन और आशा से मुक्ति मिल जाती है 

क्यूँकि ईश्वर से कुछ आशा करना 
उसे छोटा करना है। 

"ऋचा श्रीवास्तव"
पटना, बिहार