एक बच्चे को मैंने देखा
बोरी लादे पीठ पर
उसके पास चले गए
हम कुछ सोच कर
क्यों लादे फिर रहे हो
पीठ पर यह बोझा
मजदूरी क्यों कर रहे हो
हमने उससे पूछा
प्रश्न के उत्तर में वह
ले गया हमें अपने संग
वह एक स्कूल था जहाँ
पहुँच हम रह गए दंग
सभी बस्तों से
किताबें ही किताबें निकल रही थीं
कुछ की घर पर ही रह गयी थी
उन्हें सज़ा मिल रही थी
आज के ज़माने के ये बोरी बस्ते
मजदूरी में बदल गए हैं
कल डॉक्टर इंजीनियर बनने वाले
आज मजदूर बन गए हैं।
ऋचा श्रीवास्तव।
पटना ०४-०६-२०१६
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