Tuesday, August 9, 2016

"मैं क्या बनूँगा माँ"


बड़ी उमंग से, बड़े जोश से 
बेटा मेरा बोला, कल क्या 
मैं बनूँगा माँ ? पढ़ाई में  
नहीं लगता है मन थोड़ा। 

सब कहते हैं, पढ़ो-पढ़ो 
तुम सदा अव्वल रहो 
पर कैसे बताऊँ सबको 
खेल में ध्यान रहता मुझको। 

पढ़ते-पढ़ते मैं थक जाता हूँ 
"होमवर्क" नहीं कर पाता हूँ 
टीचर करती नाक में दम 
पढ़ना पड़ता मुझको हरदम। 

जिस दिन मैं नहीं पढता हूँ 
घर में अलग. "ताने" सुनता हूँ 
दादी कहती बिगड़ गया 
दादा कहते "हाथ से गया"। 

पाप की तो बात छोड़ो, कहते 
हरदम मैं हूँ ज़ीरो 
अक्षर लगते हैं, मुझे अब गोल 
पढ़ाई से अब मैं, हो गया हूँ बोर। 

सुन ये सब माँ बोली 
बेटा अब तू बस कर 
तू मेरे जिग़र का टुकड़ा 
न कर तू ज़्यादा बड़-बड़। 

मेरी आँखों के तारे सुन 
तेरे भीतर हैं बड़े गुण 
लाकर उनको सामने तू 
खुद नाम कर दे रोशन तू 

पढ़ाई में क्या रखा है  
मुझे तो बस इतना पता है 
जिसने की है, माँ की भक्ति 
पलटी है क़िस्मत उसकी 
चमका है उसका सितारा 
उठा पेन, अब लिख दे पहाड़ा। 

ऋचा श्रीवास्तव 
10-08-2016
पटना, बिहार। 

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