वह लड़की
रोज आती है 'वह' लड़की
गंदे बोरे को अपने कांधे पर उठाये
और चुनती है अपनी किस्मत सा
ख़ाली बोतल, डिब्बे और शीशियां
अपने ख़्वाबों से बिखरे
कुछ काग़ज़ के टुकड़ों को
और ठूँस देती है उसे
ज़िंदगी के बोरे में
ग़रीबी के पैबन्दों का, लिबास ओढ़े
कई पाबंदियों के साथ उतरती है
संघर्ष के गंदे नालों में
और बीनती है साहस की पन्नियां
और गीली लकड़ी सा
सुलगने लगती है अंदर ही अंदर
जब देखती है
अपनी चमकीली आंखों से
स्कूल से निकलते
यूनिफ़ार्म डाले बच्चों को!
ऋचा श्रीवास्तव
20-08-2017
पटना।
"ऋचा श्रीवास्तव"
रोज आती है 'वह' लड़की
गंदे बोरे को अपने कांधे पर उठाये
और चुनती है अपनी किस्मत सा
ख़ाली बोतल, डिब्बे और शीशियां
अपने ख़्वाबों से बिखरे
कुछ काग़ज़ के टुकड़ों को
और ठूँस देती है उसे
ज़िंदगी के बोरे में
ग़रीबी के पैबन्दों का, लिबास ओढ़े
कई पाबंदियों के साथ उतरती है
संघर्ष के गंदे नालों में
और बीनती है साहस की पन्नियां
और गीली लकड़ी सा
सुलगने लगती है अंदर ही अंदर
जब देखती है
अपनी चमकीली आंखों से
स्कूल से निकलते
यूनिफ़ार्म डाले बच्चों को!
ऋचा श्रीवास्तव
20-08-2017
पटना।