"मैंने दहेज़ नहीं माँगा" "ऋचा श्रीवास्तव "
साहब मैं थाने नहीं जाऊँगा
अपने घर से कहीं नहीं जाऊँगा
माना, पत्नी से थोड़ा मनमुटाव था
सोच अलग व विचारों में खिचांव था
पर यक़ीन मानिये, मैंने दहेज़ नहीं माँगा
मानता हूँ क़ानून पत्नी के पास है
स्त्रियों का समाज में हो रहा विकास है
चाहत मेरी थी बस, यही कि माँ-बाप
का सम्मान हो, न कभी अपमान हो
पर अब क्या फ़ायदा ?
जब टूट ही गया रिश्तों का धागा
यक़ीन मानिये, मैंने दहेज़ नहीं माँगा
परिवार संग रहना, उसे नहीं था पसंद
कहती है - यहाँ नहीं है कोई आनंद
ले चलो दूर किराये के आशियाने में
छोड़ दो माँ-बाप को किसी तहख़ाने में
नहीं छोड़ पाया, मैं बूढ़े माँ-को
फ़िर शुरू हुआ, वाद-विवाद का जलजला
खो गया मेरा, चैन और सुकून का सिलसिला
मुझसे लड़ कर, वह मायके जा पहुँची
सबक सीखा दूंगी तुझे ?
दहेज़ क़ानून दिखा दूंगी तुझे ?
यक़ीन मानिये, मैंने दहेज़ नहीं माँगा
जो कहा था, उसने आख़िरकार कर दिखाया।
झगड़ा किसी और बात का था
पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया
पुलिस थाने से, एक दिन फ़ोन आया
दहेज़ लोभी, कह कर मुझे हड़काया
सभी रिश्तेदारों के नाम थे रिपोर्ट में
माता-पिता भाई-बहन-जीजा
सभी घर से, पहुँच गए कोर्ट में
टूटा सपना घर-संसार संजोने का
मैंने तो, सारी ज़िम्मेदारी निभायी थी
पर मुझे क्या पता, माता-पिता का मोह
ऋचा श्रीवास्तव
01-04-2017
पटना
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