झिलमिल करती एक किरण
उतरी जो दादी के आँगन
लिया समेत उसे आँचल में
वार दिया उस पर तन-मन
कहने लगी उसे फिर दादी
क्यूँ री इतनी देर लगायी?
पोती बोली- देर कहाँ दादी
तूने चाहा और मैं आयी
आज कली एक नन्ही सी हूँ
कल मैं खिल कर फूल बनूँगी
सुरभित घर होगा सुगन्ध से
पर तेरे अनुकूल बनूँगी
दादी तुम बस इतना ही करना
सद्गुण अपने मुझमें भरना
चन्दा की शीतलता देना
सूरज की कर्मठता भरना
जब मैं हो जाऊंगी सयानी
करोगी तुम वर का सन्धान
मेरे मन की एक बात का
दादी रखना तुम हमेशा ध्यान
धीर-गम्भीर दादा सा वर हो
और पाप सा- रसराज
फुआ जैसा हंसमुख दिल हो
बनेगा जो मेरा सरताज
पोती की बातें सुन कर
दादी का अन्तर्मन भर आया
आनेवाली दिवस की सोचकर
एक मीठा सपना सा छाया
हर साध तुम्हारी पूरी हो
सौ बार दुआयें देती हूँ
तू सुख से जिए, फल-फूले
मैं तेरी बलाएं लेती हूँ।
ऋचा श्रीवास्तव
11-01-2017
पटना, बिहार।
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