Tuesday, March 21, 2017

स्त्री नाच रही है


"स्त्री नाच रही है........"         'ऋचा श्रीवास्तव '



स्त्री नाच रही है 
तब से अब तक
स्त्री नाच रही है 
कुम्हार के चाक की तरह, 
ताकि गढ़ सके सृष्टि।


स्त्री नाच रही है ताकि 
फल-फूल सके सभ्यता 
स्त्री नाच रही है
बस्तर के जंगलों से 
दिल्ली की पॉश कॉलोनियों तक। 


हाथ में टांगी लिए 
माथे पर खांची लिए 
कीचड़ में धान का विरवा रोपते हुए 
पीठ पर बच्चा बांधे 
पेट में बच्चा लिए / स्त्री नाच रही है। 


रसोई में, ड्राइंग रूम में 
बच्चों के स्टडी रूम में 
स्कूलों में, कॉलेजों में, कार्यालयों में  
बसों में, ट्रेनों में, हवाई जहाजों में 
हाथ में कम्प्यूटर लिए, वह नाच रही है। 

बन्दूक उठाये सड़कों पर 
सरहद पर, फाइटर प्लेनों में
स्त्री नाच रही है
जहाँ भी बरस रहा है, प्रेम  
स्त्री की प्रकृति है नाचना। 

वह नाचना चाहती है 
वह नाचना जानती है 
खिलते हैं फूल / छाते हैं बादल
बरसते हैं फुहारे / जब स्त्री नाचती है
स्त्री नाचती रहेगी आगे भी। 

सृष्टि का अन्त नहीं होगा 
जल प्रलय से, भूकंप से 
अणु या परमाणु बम के विस्फोट से 
सृष्टि का अन्त तब होगा 
जब स्त्री नाचना बंद कर देगी। 


ऋचा श्रीवास्तव 
21/03/2017 
पटना, बिहार